Vantara released 33 deer – गुजरात वन विभाग और वंतारा ने मिलकर 21 अगस्त 2025 को बरदा वन्यजीव अभयारण्य में 33 चीतल (स्पॉटेड डियर) को फिर से जंगल में छोड़ा। यह पहल न केवल राज्य बल्कि पूरे भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।
पहल की शुरुआत
वन्यजीव विविधता को समृद्ध करने और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बहाल करने के उद्देश्य से, अनंत अंबानी द्वारा स्थापित वंतारा ने गुजरात वन विभाग के साथ हाथ मिलाया। इस सहयोग के तहत जामनगर स्थित वंतारा के ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर से 33 चीतल को विशेष रूप से तैयार एम्बुलेंस द्वारा बरदा अभयारण्य लाया गया।
अभयारण्य में पहुंचने के बाद, वन विभाग और वंतारा की टीमों ने पारिस्थितिक उपयुक्तता का आकलन किया और सहायक प्रणालियों की तैयारी सुनिश्चित की। इसके बाद हिरणों को वन विभाग की निगरानी में छोड़ा गया।
वंतारा की भूमिका
वंतारा ने इस पूरी प्रक्रिया में तकनीकी और रसद (logistics) सहायता प्रदान की। संस्था ने यह सुनिश्चित किया कि पूरे अभियान में संरक्षण प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाए।
ग्रीन्स जूलॉजिकल सेंटर के निदेशक डॉ. बृज किशोर गुप्ता ने कहा:
“यह पहल बरदा वन्यजीव अभयारण्य की जैव विविधता को पुनर्स्थापित और समृद्ध करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यहां चीतल पहले भी मौजूद थे और उनका पुनःप्रवेश वैज्ञानिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यह कदम इस आवास के पुनरुद्धार का संकेत है।”
सरकार की सक्रिय पहल
गुजरात वन विभाग का यह कदम इस बात का प्रमाण है कि राज्य सरकार वन्यजीव संरक्षण को लेकर कितनी गंभीर है। विभाग ने पारिस्थितिक आकलन, प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति योजना और अंतर-एजेंसी सहयोग के आधार पर इस पहल को सफल बनाया।
यह सहयोग न केवल सरकारी संस्थानों की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि वंतारा जैसे निजी संगठनों की भागीदारी की भी ताकत को उजागर करता है। विशेषज्ञता और संसाधनों के साझा उपयोग से भारत में वन्यजीव प्रबंधन के लिए नए मानक स्थापित हो रहे हैं।
बरदा वन्यजीव अभयारण्य
पोरबंदर जिले में 192.31 वर्ग किलोमीटर में फैला बरदा अभयारण्य अपनी विविध वनस्पतियों और वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध है। यहां तेंदुआ, भेड़िया, सियार, जंगली सूअर और नीलगाय जैसे जानवर पाए जाते हैं।
यहां कई दुर्लभ और लुप्तप्राय पक्षियों की प्रजातियां भी रहती हैं, जैसे – चित्तीदार चील और क्रेस्टेड हॉक-ईगल। इस कारण यह क्षेत्र न केवल शिकारियों के लिए बल्कि पक्षियों के लिए भी महत्वपूर्ण आश्रय स्थल है।
ऐतिहासिक संदर्भ
इतिहास में बरदा अभयारण्य सांभर, चीतल और चिंकारा की बड़ी आबादी का घर था। लेकिन समय के साथ आवास विखंडन और अन्य पारिस्थितिक दबावों के कारण इनकी संख्या कम हो गई।
वन विभाग ने इस स्थिति को सुधारने के लिए देशी शाकाहारी जीवों को फिर से बसाने की योजना बनाई। इसका उद्देश्य है – पोषण संतुलन बहाल करना और अभयारण्य को एक कार्यात्मक संरक्षण परिदृश्य के रूप में मजबूत बनाना।
तालिका: प्रमुख तथ्य
विवरण | जानकारी |
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घटना | Vantara released 33 deer in the wild |
तारीख | 21 अगस्त 2025 |
स्थान | बरदा वन्यजीव अभयारण्य, गुजरात |
प्रजाति | चीतल (स्पॉटेड डियर – Axis axis) |
आयोजनकर्ता | वंतारा व गुजरात वन विभाग |
स्रोत | ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू सेंटर, जामनगर |
उद्देश्य | जैव विविधता पुनर्स्थापन और पारिस्थितिक संतुलन |
संस्थापक वंतारा | अनंत अंबानी |
वंतारा और संरक्षण का नया मॉडल
वंतारा पहले भी घायल और पीड़ित जानवरों को बचाकर उनका पुनर्वास कर चुका है। हाथियों, शेरों, बाघों और अन्य दुर्लभ प्रजातियों को बचाकर उनकी देखभाल करना इस संस्था का मुख्य उद्देश्य है।
बरदा में हिरणों की वापसी यह दिखाती है कि वंतारा सिर्फ बचाव केंद्र नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक संरक्षण का केंद्र है। यहां जानवरों को स्वस्थ कर फिर से जंगल में लौटाना असली उपलब्धि है।
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विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल पूरे देश के लिए एक मॉडल हो सकती है। शाकाहारी जीवों की संख्या बढ़ने से शिकारी प्रजातियों के लिए शिकार आधार मजबूत होगा।
वन विभाग और वंतारा दोनों इन हिरणों की निगरानी GPS कॉलर और ग्राउंड सर्वे की मदद से करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये जंगल में सुरक्षित और अनुकूलित रह सकें।
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भविष्य की दिशा
बरदा में चीतल की वापसी सिर्फ शुरुआत है। गुजरात वन विभाग और वंतारा आगे और प्रजातियों जैसे नीलगाय और चिंकारा को भी जंगल में छोड़ने की योजना बना रहे हैं।
साथ ही, यह पहल बरदा को एशियाई शेरों का दूसरा घर बनाने की दिशा में भी मददगार साबित होगी।
निष्कर्ष
Vantara released 33 deer – यह खबर सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि भारत के वन्यजीव संरक्षण के लिए उम्मीद का प्रतीक है। वंतारा और गुजरात वन विभाग का यह संयुक्त प्रयास दिखाता है कि जब विज्ञान, संसाधन और इच्छाशक्ति एक साथ आते हैं तो प्रकृति को उसका खोया संतुलन वापस मिल सकता है।
बरदा अभयारण्य में दौड़ते ये 33 चीतल न सिर्फ जंगल की खूबसूरती बढ़ाएंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जैव विविधता का खजाना भी सुरक्षित रखेंगे।