Bengaluru Zoo यानी बन्नेरघट्टा बायोलॉजिकल पार्क (Bannerghatta Biological Park) से एक दुखद खबर सामने आई है। यहाँ एक बाघिन “हिमा” द्वारा जन्मे तीन नवजात शावकों की मौत हो गई। घटना ने न केवल वन्यजीव प्रेमियों बल्कि पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। मौत के पीछे कारण “माँ द्वारा शावकों को छोड़ देना” बताया जा रहा है, वहीं कार्यकर्ताओं का मानना है कि समय पर कदम उठाए जाते तो इन नन्हें शावकों की जान बचाई जा सकती थी।
घटना का पूरा विवरण
7 जुलाई को सात वर्ष की बाघिन हिमा ने तीन शावकों को जन्म दिया। इनमें दो नर और एक मादा शावक शामिल थे। जन्म के कुछ ही घंटों बाद हिमा ने उन्हें दूध पिलाने और देखभाल करने से इनकार कर दिया। चूँकि शावकों को मातृत्व का सहारा नहीं मिला, उनकी हालत लगातार बिगड़ती गई और अंततः वे कुछ ही दिनों में एक-एक कर मर गए।
चिकित्सकों और कर्मचारियों के अनुसार, हिमा पहले भी दो शावकों को जन्म देकर सफलतापूर्वक उनका पालन-पोषण कर चुकी है। लेकिन इस बार उसने नवजात शावकों को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया।
कब और कैसे हुई मौतें?
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार:
- 8 जुलाई को एक नर शावक की मौत गर्दन की चोट (Cervical injury) से हुई।
- अगले ही दिन दूसरा नर शावक सिर पर गंभीर चोट लगने से मर गया। बताया गया कि यह चोट माँ बाघिन के काटने से आई थी।
- तीसरा शावक, जो मादा थी, उसी दिन दम तोड़ बैठी। उसके शरीर पर भगदड़ जैसी चोटें दर्ज की गईं।
वन्यजीव कार्यकर्ताओं के आरोप
वन्यजीव प्रेमियों और कार्यकर्ताओं ने इस घटना को लेकर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि:
- Bengaluru Zoo की पशु-चिकित्सक टीम और कर्मचारियों ने सही समय पर हस्तक्षेप नहीं किया।
- अगर शावकों को तुरंत और उचित देखभाल दी जाती तो उनकी जान बच सकती थी।
- यह घटना हाल ही में हुई एक अन्य मौत से भी जोड़ी जा रही है, जिसमें एक गर्भवती ज़ेब्रा की मौत कथित रूप से कर्मचारियों की लापरवाही के चलते हुई थी।
इन घटनाओं ने लोगों के मन में सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर इतनी बार लापरवाही क्यों हो रही है।
अधिकारियों का पक्ष
दूसरी ओर, वन विभाग और Bengaluru Zoo प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज किया है। उनका कहना है कि:
- शावकों को तुरंत अस्पताल ले जाया गया और “हैंड-रियरिंग” (मानव देखरेख) की कोशिश की गई।
- चिकित्सकों और पशु देखभाल कर्मचारियों ने लगातार इलाज दिया लेकिन शावकों को बचाया नहीं जा सका।
- इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी सीसीटीवी कैमरों से की जा रही थी और किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती गई।
वन विभाग के बयान के अनुसार, कैद में रहने वाले जानवर कई बार अपने बच्चों को छोड़ देते हैं। यह मातृत्व प्रवृत्ति की कमी का परिणाम है और विश्वभर के चिड़ियाघरों में ऐसी घटनाएँ होती रहती हैं।
मीडिया को दी गई अपील
वन विभाग ने मीडिया और जनता से अपील की कि वे अफवाहों और अप्रमाणित सूचनाओं पर भरोसा न करें। अधिकारियों ने कहा कि हर संभव कदम उठाया गया, लेकिन परिस्थितियाँ नियंत्रण से बाहर थीं।
Bengaluru Zoo में इससे पहले भी उठे सवाल
यह पहली बार नहीं है जब Bengaluru Zoo चर्चा में आया हो। कुछ ही समय पहले गर्भवती ज़ेब्रा की मौत ने भी कई सवाल खड़े किए थे। लगातार होने वाली ऐसी घटनाएँ चिड़ियाघर की देखभाल व्यवस्था और कर्मचारियों की दक्षता पर संदेह पैदा कर रही हैं।
विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञ मानते हैं कि:
- बाघिन द्वारा शावकों को छोड़ देना कैद में रहने वाले जानवरों में आम घटना है।
- लेकिन ऐसी स्थितियों में ज़रूरी है कि प्रबंधन तेज़ और वैज्ञानिक कदम उठाए।
- नवजात शावकों के जीवन को बचाने के लिए उच्च स्तरीय चिकित्सकीय सुविधा और अनुभवी कर्मचारियों की तत्काल उपलब्धता अनिवार्य है।
भविष्य के लिए सबक
यह घटना हमें कई बड़े सबक देती है:
- चिड़ियाघरों में जानवरों की मातृत्व प्रवृत्ति पर लगातार शोध होना चाहिए।
- पशु चिकित्सकों और कर्मचारियों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे हर आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई कर सकें।
- जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए पारदर्शी रिपोर्टिंग और स्वतंत्र जांच ज़रूरी है।
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निष्कर्ष
तीन मासूम शावकों की मौत ने हर किसी को दुखी किया है। भले ही Bengaluru Zoo प्रशासन ने लापरवाही से इनकार किया हो, लेकिन इस तरह की घटनाएँ हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमारे वन्यजीवों की सुरक्षा वाकई सही हाथों में है?
अगर समय रहते और अधिक सटीक हस्तक्षेप होता तो शायद तीनों शावक आज ज़िंदा होते। यह घटना न केवल चिड़ियाघर प्रशासन के लिए बल्कि पूरे वन्यजीव संरक्षण तंत्र के लिए एक चेतावनी है कि हमें और अधिक सजग, जिम्मेदार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।