नंदनी गांव के लोगों ने अपनी प्यारी हथिनी महादेवी के जाने के बाद एक साहसिक फैसला लिया है। भले ही अंबानी पक्ष ने कानूनी लड़ाई जीत ली हो और महादेवी को गुजरात स्थित वंतारा एनिमल केयर फैसिलिटी भेज दिया गया हो, लेकिन इस भावनात्मक क्षति ने नंदनी और आसपास के क्षेत्रों में जबरदस्त प्रतिक्रिया पैदा की है। इसके विरोध में, गांववासियों ने अंबानी समूह की कंपनी जिओ के सिम कार्ड और उत्पादों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है, जो कि पशु प्रेम से जुड़ी दुर्लभ सामाजिक एकता का उदाहरण है।
महादेवी की भावुक विदाई
महादेवी, जिसे मधुरी के नाम से भी जाना जाता है, नंदनी गांव के लोगों के लिए सिर्फ एक हाथी नहीं थी—वह परिवार का हिस्सा थी। महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के शिरोल तालुका स्थित नंदनी गांव के स्वस्तिश्री जिनसेन भट्टारक मठ में वह पिछले 33 वर्षों से रह रही थी। मठ के साथ-साथ गांववासियों ने भी महादेवी की देखभाल छोटे बच्चे की तरह की, और महादेवी ने भी बदले में भक्तों और ग्रामीणों को अपने परिवार की तरह अपनाया।
लेकिन महादेवी की संरक्षकता को लेकर एक कानूनी लड़ाई छिड़ गई, जो बॉम्बे हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची। दोनों अदालतों ने महादेवी को अंबानी परिवार के स्वामित्व वाले गुजरात स्थित वंतारा पशु देखभाल केंद्र भेजने का निर्णय सुनाया। 28 जुलाई की रात, अदालत के आदेश के अनुसार, महादेवी को गांव से विदा किया गया, और इस दौरान सभी धर्मों के ग्रामीणों ने भावुक विदाई दी।
हालांकि, विदाई के समय गुस्साए ग्रामीणों ने उस वाहन पर पथराव किया जिसमें महादेवी को ले जाया जा रहा था। बावजूद इसके, कोर्ट का निर्णय लागू किया गया और महादेवी को वंतारा भेज दिया गया।
अंबानी समूह के खिलाफ नाराज़गी
नंदनी गांव के लोगों के लिए यह एक भावनात्मक आघात था। यह दुख जल्दी ही गुस्से में बदल गया और गांववासियों ने जिओ सिम कार्ड का बहिष्कार करने का निर्णय लिया, जो अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस समूह का हिस्सा है। यह आंदोलन केवल नंदनी तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे शिरोल तालुका में फैल गया, और हजारों नागरिकों ने अपने जिओ नंबरों को अन्य कंपनियों में पोर्ट करना शुरू कर दिया।
जब जिओ प्रतिनिधि गांवों में पहुंचे और ग्राहकों से पूछा कि वे अभी सक्रिय प्लान होने के बावजूद क्यों सिम पोर्ट करवा रहे हैं, तो ग्रामीणों ने साफ-साफ जवाब दिया: “हमारा हाथी वापस लाओ।”
बहिष्कार अब केवल सिम तक सीमित नहीं
जिओ सिम कार्ड के विरोध से शुरू हुआ यह आंदोलन अब अंबानी समूह के सभी उत्पादों के बहिष्कार में बदल गया है। नंदनी गांव के लोग अब रिलायंस से जुड़ी किसी भी सेवा या उत्पाद का उपयोग नहीं करने का संकल्प ले चुके हैं।
जिओ के कस्टमर केयर सेंटर्स को अब रोज़ाना सैकड़ों कॉल्स आ रहे हैं, जिनमें लोग अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं और साफ कह रहे हैं कि वे जिओ का उपयोग नहीं करेंगे। कुछ ग्राहकों ने यहां तक कह दिया, “5 या 50 लोग जिओ बंद करें तो फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन जब ये आंदोलन पूरे इलाके में फैल जाएगा, तो असर दिखेगा।”
उन्होंने यह भी कहा, “अपने मालिक से कहो कि हमारा हाथी वापस लाओ। जब हमें हमारी महादेवी वापस मिलेगी, तभी हम जिओ सिम वापस चालू करेंगे।”
भावनाओं से जुड़ा एकजुट समुदाय
इस विरोध की सबसे खास बात यह है कि कैसे नंदनी गांव के लोगों ने एक जानवर के लिए इतनी गहरी भावनाएं दिखाई हैं। आज के समय में जब ग्रामीण समाज कई मुद्दों पर एकमत नहीं हो पाता, यह आंदोलन बताता है कि कैसे एक पशु से जुड़ी भावना पूरे समाज को एक साथ खड़ा कर सकती है।
नंदनी और शिरोल के लोगों ने सिर्फ एक हाथी नहीं खोया, उन्होंने अपनी संस्कृति और पहचान का एक हिस्सा खोया है। महादेवी केवल एक पशु नहीं थी—वह उनकी परंपरा, श्रद्धा और सामाजिक एकता की प्रतीक थी।
न्यायालय बनाम जनभावना
हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने महादेवी को वंतारा भेजने का कानूनी निर्णय लिया, लेकिन नंदनी गांव के लोग मानते हैं कि उनसे कभी पूछा ही नहीं गया कि वे क्या चाहते हैं। उनके अनुसार, महादेवी को गांव में भरपूर प्यार और देखभाल मिल रही थी।
ग्रामीणों का मानना है कि भले ही कानूनी लड़ाई अंबानी पक्ष ने जीत ली हो, लेकिन गांव का दिल अभी भी टूटा हुआ है। एक बुजुर्ग ग्रामीण ने कहा, “वो सिर्फ हाथी नहीं थी। वो हमारी बेटी थी, हमारी रक्षक थी, और हमारा गौरव थी।”
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निष्कर्ष: एक अनोखा आंदोलन
नंदनी गांव के लोगों का यह आंदोलन एक शक्तिशाली संदेश देता है—केवल किसी बड़े कॉरपोरेट को नहीं, बल्कि पूरे समाज को। यह दर्शाता है कि ग्रामीण भारत में पशुओं के साथ भावनात्मक जुड़ाव कितना गहरा होता है और यह जुड़ाव किसी भी कानूनी निर्णय से ऊपर हो सकता है।
वंतारा भले ही एक विश्वस्तरीय पशु पुनर्वास केंद्र हो, लेकिन नंदनी की भावनाओं के लिए उसकी कोई तुलना नहीं है। उनका संदेश साफ है: “हमें हमारी महादेवी वापस चाहिए।“
यह कहानी सिर्फ एक हाथी की नहीं है, यह एक गांव, उसकी भावनाओं, उसकी पहचान और शांतिपूर्ण विरोध की कहानी है। नंदनी के लोग हथियारों से नहीं, साइलेंट बहिष्कार और सिम कार्ड से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं।